Monday, August 20, 2012

Shyad main zindagi ki saher



शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया

ताउम्र ढूँढता रहा मंजिल मैं इश्क की
अंजाम है के गर्द-ए-सफर ले के आ गया

फाक़िर सनम क़दे में ना आता मैं लौट कर
इक ज़ख़्म भर गया था इधर ले के आ गया

नश्तर है मेरे हाथ में काँधों पे मैक़दा
लो मैं इलाजे दर्द-ए-जिगर ले के आ गया


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