ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी
वो बुढिया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का घेरा
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वो छोटी सी रातें वो लम्बी कहानी, वो कागज़ की कश्ती....
कडी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिडिया वो तितली वो बुलबुल पकडना
वो गुडियों की शादी में लडना झगडना
वो झूले से गिरना वो गिर के सँभलना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
वो फूटी हुई चूडियों की निशानी, वो कागज की कश्ती....
कभी रेत के ऊँचे टीले पे जाना
घरौंदे बनाना बना के मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
न दुनिया का ग़म न रिश्तों के बन्धन
बडी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी, वो कागज़ की कश्ती.....
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