कहीं दूर जब दिन ढल जाए, साँझ की दुल्हन बदन चुराए,
चुपके से आए.....
मेरे ख़यालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाए,
दीप जलाए....
कभी यूँ ही जब हुई बोझल साँसें
भर आई, बैठे बैठे जब यूँ ही आँखें
तभी मचल के प्यार से चल के
छूए कोई मुझे पर नज़र न आए, नज़र न आए....
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं पे निकल आएँ जनमों के नाते
है मीठी उलझन, बैरी अपना मन,
अपना ही हो के सहे, दर्द पराए, दर्द पराए.....
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, साँझ की दुल्हन बदन चुराए....
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